GNU/LINUX ऑपरेटिंग सिस्टम एक फ्री ऑपरेटिंग सिस्टम हैं । यहाँ फ्री का मतलब मुफ्त सॉफ्टवेयर नहीं हैं लेकिन अगर हिंदी में कहा जाय तो यह मुक्त सॉफ्टवेयर हैं । १९८५ में रिचर्ड स्टॉलमैन ने फ्री सॉफ्टवेयर फाउंडेशन सुरुवात की थी । उस समय कम्प्यूटर्स और सॉफ्टवेयर के दुनिया में बहुत बदलाव आ रहा था । ७० के दसक में प्रोग्रामर्स अपने अपने सॉफ्टवेयर आपस में शेयर किया करते थे । लेकिन ८० के दसक में यह सब बदलने लगा । कंपनियां प्रोप्रिएटरी सॉफ्टवेयर की तरफ धयान देने लगी । डॉ स्टॉलमैन ने इसी स्तिथि को परिवर्तित करने हेतु फ्री सॉफ्टवेयर फाउंडेशन की स्थापना की थी । उन्होंने फ्री सॉफ्टवेयर को कुछ इस प्रकार परिभासित किया था :
१ ) फ्री सॉफ्टवेयर वह हैं जो यूजर को उसे किसी भी तरह रन करने की आज़ादी दे ।
२) फ्री सॉफ्टवेयर मैं यूजर को उस सॉफ्टवेयर के सोर्स कोड को अध्ययन करने की आज़ादी होती हैं
३) यूजर उस सोर्स कोड को अपने जरुरत के अनुसार बदल सकता हैं ।
३) यूजर उस सोर्स कोड को अपने जरुरत के अनुसार बदल सकता हैं ।
४) यूजर को असली और बदले हुए(modified) सोर्स कोड एवं सॉफ्टवेयर को वितरित करने की पूर्ण आज़ादी होती हैं ।
१९८३ में जब रिचर्ड स्टॉलमैन ने GNU प्रोजेक्ट की सुरुवात की थी तब उनका लक्ष्य एक UNIX समान ऑपरेटिंग सिस्टम बनाना था , जो पूरी तरह से फ्री सॉफ्टवेयर से बना हो । १९९० तक लघभघ पूरा ऑपरेटिंग सिस्टम बनकर तैयार हो गया था लेकिन ऑपरेटिंग सिस्टम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा कर्नल (kernal ) बनकर तैयार नहीं हुआ था ।
स्टॉलमैन ने कर्नल बनाने के लिए एक एडवांस्ड डिज़ाइन चुना जिसका नाम हर्ड रखा गया था । लेकिन समय पर यह बनकर तैयार नहीं हुआ । १९९१ में फ़िनलैंड के एक विद्यार्थी लिनस ट्रोवाल्ड्स ने GNU के कुछ डेवलपमेंट कंपोनेंट्स इस्तेमाल करके एक करनाल बनाया और उसे फ्री लाइसेंस के तहत रिलीज़ किया ।
इस प्रकार GNU सिस्टम और लिनक्स कर्नल दोनों को एक कर GNU /LINUX अस्तित्व में आया । मुक्त सॉफ्टवेयर होने के कारन पुरे दुनिया के डेवलपर्स इस पर काम कर सकते हैं और इसके सोर्स कोड को अपने ज़रुरत के अनुसार बदल सकते हैं । और ऐसा हुआ भी हैं पूरी दुनिया में आज GNU/LINUX के हज़ारो डिस्ट्रीब्यूशन्स हैं । जैसे उबुन्टु ,फेडोरा , मिनट , डेबियन ,काली वगेरा ।
दुनिया भर के अधिकतम सेर्वेरों में GNU/LINUX ऑपरेटिंग सिस्टम ही इस्तेमाल किया जाता हैं। पूरी दुनिया के ९०% सुपरकम्प्युटर्स में भी GNU/LINUX ही ऑपरेटिंग सिस्टम का काम करता हैं । दुनिया का सबसे लोकप्रिय मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम एंड्राइड का कर्नल लिनक्स कर्नल से ही बनाया गया हैं ।
१९८३ में जब रिचर्ड स्टॉलमैन ने GNU प्रोजेक्ट की सुरुवात की थी तब उनका लक्ष्य एक UNIX समान ऑपरेटिंग सिस्टम बनाना था , जो पूरी तरह से फ्री सॉफ्टवेयर से बना हो । १९९० तक लघभघ पूरा ऑपरेटिंग सिस्टम बनकर तैयार हो गया था लेकिन ऑपरेटिंग सिस्टम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा कर्नल (kernal ) बनकर तैयार नहीं हुआ था ।
स्टॉलमैन ने कर्नल बनाने के लिए एक एडवांस्ड डिज़ाइन चुना जिसका नाम हर्ड रखा गया था । लेकिन समय पर यह बनकर तैयार नहीं हुआ । १९९१ में फ़िनलैंड के एक विद्यार्थी लिनस ट्रोवाल्ड्स ने GNU के कुछ डेवलपमेंट कंपोनेंट्स इस्तेमाल करके एक करनाल बनाया और उसे फ्री लाइसेंस के तहत रिलीज़ किया ।
इस प्रकार GNU सिस्टम और लिनक्स कर्नल दोनों को एक कर GNU /LINUX अस्तित्व में आया । मुक्त सॉफ्टवेयर होने के कारन पुरे दुनिया के डेवलपर्स इस पर काम कर सकते हैं और इसके सोर्स कोड को अपने ज़रुरत के अनुसार बदल सकते हैं । और ऐसा हुआ भी हैं पूरी दुनिया में आज GNU/LINUX के हज़ारो डिस्ट्रीब्यूशन्स हैं । जैसे उबुन्टु ,फेडोरा , मिनट , डेबियन ,काली वगेरा ।
दुनिया भर के अधिकतम सेर्वेरों में GNU/LINUX ऑपरेटिंग सिस्टम ही इस्तेमाल किया जाता हैं। पूरी दुनिया के ९०% सुपरकम्प्युटर्स में भी GNU/LINUX ही ऑपरेटिंग सिस्टम का काम करता हैं । दुनिया का सबसे लोकप्रिय मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम एंड्राइड का कर्नल लिनक्स कर्नल से ही बनाया गया हैं ।
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